
शुरुआती सफर: संघर्ष और पहला कदम
मनोज कुमार ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फिल्म “फैशन” से की, जहाँ उन्हें एक बूढ़े भिखारी का रोल मिला। उस समय लेखराज भाकरी का किरदार निभाया जा रहा था। इसके तुरंत बाद होमी भाभा ने उन्हें ‘गंगू तेली’ नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म में काम करने का मौका दिया। निर्माता द्वारा दिए गए 1000 रुपये की खुशी का ठिकाना न रहा – यह उनके लिए एक नया उत्साह लेकर आया।
धीरे-धीरे, शुरुआती फिल्मों में कुछ कामयाब रहीं और कुछ नहीं, पर मनोज कुमार का अभिनय सराहा गया। फिल्मों की एक लंबी कतार में उन्होंने ‘हिमालय की गोद में’, “‘वो कौन थी”, “गुमराह”, “दो बदन” आदि फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। इन शुरुआती अनुभवों ने उन्हें बॉलीवुड में अपने लिए एक पहचान बनाने में मदद की।
देशभक्ति की राह पर – ‘शहीद’ और प्रेम चोपड़ा की दोस्ती
जब मनोज कुमार स्टारडम की सीमा तक पहुँच गए, तो उन्होंने सोचा कि कुछ नया किया जाए। इसी दौरान उन्होंने निर्देशित फिल्म ‘शहीद’ में काम किया, जो क्रांतिकारी भगत सिंह पर आधारित थी। इस फिल्म में मनोज कुमार ने अपने अभिनय के जरिए प्राण को अलग तरीके से प्रस्तुत किया। इस फिल्म की बेहद सराहना हुई और यही वह मोड़ था जहाँ से उनकी और प्रेम चोपड़ा की दोस्ती की शुरुआत हुई।
प्रेम चोपड़ा के साथ मिलकर मनोज कुमार ने लगभग 19 फिल्मों में एक साथ काम किया, जिससे उनकी दोस्ती और भी मजबूत हुई। ये फिल्में न केवल दर्शकों के दिलों में घर कर गईं, बल्कि देशभक्ति के संदेश भी देती रहीं।
‘जय जवान जय किसान’ की प्रेरणा और ‘उपकार’ का उदय
एक बार मनोज कुमार ने दिल्ली में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को ‘शहीद’ फिल्म दिखाई। शास्त्री जी ने उन्हें सुझाव दिया कि ‘जय जवान जय किसान’ के नारे पर आधारित एक फिल्म बनाई जाए। इसी सुझाव से शुरू हुई ‘उपकार’ फिल्म, जिसने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता पाई। इस फिल्म के साथ ही मनोज कुमार के करियर में एक नया मोड़ आया – अब वह केवल खलनायक के बजाय कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में भी अपनी छाप छोड़ने लगे।
राज कपूर ने फिल्म देखने के बाद मनोज कुमार को बधाई देते हुए कहा, “मुझे तुम पर गर्व है और आगे चलकर इंडस्ट्री में मेरी जगह तुम लोगे।” इसी तारीफ के साथ मनोज कुमार को फिल्मों में एक नया स्थान मिला। अब वह एक्टर, राइटर, प्रोड्यूसर, निर्देशक और जो भी फिल्म बनाते, वह सुपरहिट होती – जैसे कि ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, “शोर”, “क्रांति” आदि। हालांकि, बाद में उनकी अपनी बनाई फिल्मों का जादू दर्शकों पर उतना असरदार न रह सका।
सफलता की ऊंचाइयाँ और चुनौतियाँ
1975-76 के दशक में जब राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का राज था, तब भी मनोज कुमार की छायाकार द्वारा निर्देशित फिल्में ‘संन्यासी’ और ‘दस नम्बरी’ सुपरहिट रहीं। ‘उपकार’ के लिए राजेश खन्ना को साइन किया गया था, जो बाद में प्रेम चोपड़ा को मिला। वहीं, आमताभ बच्चन को ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ के लिए साइन किया गया, पर वह उतने सफल नहीं हो सके।
मनोज कुमार ने सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी निभाई। उन्होंने ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में उभरते भारत की तस्वीर से लेकर विभाजन के दर्द तक को बखूबी बयां किया। उनका व्यक्तित्व, जो कि एक साधारण नागरिक से उठकर ‘भारत कुमार’ तक पहुंचा, आज भी बॉलीवुड में और आम लोगों के दिलों में जीवंत है।
विभाजन का दर्द और संघर्ष की कहानी
मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। विभाजन के दौरान उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आया और उन्होंने कुछ महीने दिल्ली के शरणार्थी कैंप में गुजारें। इन संघर्षों ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और वे हमेशा संघर्षरत रहे।
1957 में फिल्म “फैशन” में छोटी सी भूमिका के साथ उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद, ‘सहारा’ (1958), ‘चांद’ (1952) और ‘हनीमून’ (1960) जैसी फिल्मों में भी नजर आए, पर वे बड़े पैमाने पर सराहे नहीं गए।
1965 में आई देशभक्ति फिल्म ‘शहीद’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के साथ आलोचकों को भी जवाब दिया। इस फिल्म की सफलता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी उन्हें सराहा।
देशभक्ति और बॉलीवुड की नई पहचान
1967 में, मनोज कुमार की निर्देशन में बनी पहली देशभक्ति फिल्म का गाना “मेरे देश की धरती” बेहद लोकप्रिय हुआ। 1960 और 1970 के दशकों में उनकी फिल्मों का बोलबाला रहा। उन्होंने ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में भारत की बदलती तस्वीर, विभाजन का दर्द, और देशभक्ति के जज़्बे को दर्शाया।
इन फिल्मों ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी सफलता हासिल की। पूरेब और पश्चिम को यूके में भी रिलीज़ किया गया, जहाँ इसने 50 सप्ताह तक थिएटर में रहने का रिकॉर्ड बनाया।
प्रेरणा और निजी संघर्ष
मनोज कुमार बचपन से ही दिलीप कुमार के बड़े फैन थे। दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ (1949) रिलीज़ हुई जब मनोज मात्र 11 साल के थे। उस फिल्म में दिलीप कुमार द्वारा निभाए गए किरदार ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने तय कर लिया कि यदि कभी अभिनेता बनेंगे तो अपना नाम मनोज कुमार ही रखेंगे।
फिल्मी दुनिया में कदम रखने के बाद उन्होंने यह नाम अपनाया और अपनी मेहनत से बॉलीवुड में एक अलग पहचान बनाई। कई वर्षों बाद, जब दिलीप कुमार ने उनकी फिल्म ‘क्रांति’ में अभिनय करने के लिए हामी भर दी, तो मनोज कुमार की खुशी का कोई ठिकाना न रहा।
1962 में आई फिल्म ‘हरियाली और रास्ता’ से उनकी पहली बड़ी सफलता मिली। इसके बाद ‘वो कौन थी?’ भी काफी सफल रही। उन्होंने देशभक्ति से भरपूर फिल्मों के अलावा ‘हिमालय की गोद में’, ‘सावन की घटा’, और ‘गुमनाम’ जैसी फिल्मों में रोमांटिक किरदार निभाए। 1981 में आई फिल्म ‘क्रांति’ ने उनके करियर की आखिरी बड़ी सफलता के रूप में उन्हें यादगार बना दिया।
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सम्मान और पुरस्कार
मनोज कुमार का योगदान केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने समाज के प्रति अपने विचार और देशभक्ति के संदेश को फिल्मों के माध्यम से उजागर किया।
- 1968 में ‘उपकार’ – इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशक, कहानी और संवाद में चार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते।
- 1972 में ‘बेईमान’ – सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पुरस्कार मिला।
- 1975 में ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ – सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर अवॉर्ड प्राप्त किया।
- 1999 में – मनोज कुमार को फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- 2008 में किशोर कुमार अवॉर्ड और 2010 में राज कपूर सम्मान भी उन्हें प्राप्त हुए।
हाइलाइट्स:
- मनोज कुमार का असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था
- मुंबई (बंबई) में अभिनय करियर की शुरुआत, ‘फैशन’ से पहला अनुभव
- ‘गंगू तेली’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘वो कौन थी’, ‘गुमराह’, ‘दो बदन’ जैसी फिल्मों में शानदार प्रदर्शन
- ‘शहीद’, ‘उपकार’, ‘क्रांति’ जैसी देशभक्ति फिल्मों ने उनकी पहचान को नया आयाम दिया
- राज कपूर, प्रेम चोपड़ा और अन्य उद्योग जगत के सितारों से प्रशंसा प्राप्त
- विभाजन के दर्द और देशभक्ति की भावना को दर्शाती फिल्मों में अतुलनीय योगदान
- विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मान से नवाजा गया, जैसे फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, किशोर कुमार अवॉर्ड आदि

मनोज कुमार केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक असाधारण व्यक्तित्व, एक प्रेरणादायक निर्देशक, और एक देशभक्त भी थे। उनके द्वारा बनाई गई फिल्में – ‘शहीद’, ‘उपकार’, ‘क्रांति’, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ – आज भी भारतीय सिनेमा में प्रेरणा के स्रोत हैं।
उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ, लेकिन विभाजन के दर्द, संघर्ष और देशभक्ति की भावना ने उन्हें वह बना दिया जो आज हम भारत कुमार के नाम से जानते हैं। उन्होंने अपने साधारण जीवन से एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी प्रेरणा लेंगी।
मनोज कुमार की फिल्मों में न सिर्फ मनोरंजन था, बल्कि देश के प्रति एक गहरी लगन और भावना भी झलकती थी। उनके जीवन और करियर का यह अद्वितीय सफर हमें सिखाता है कि कैसे एक साधारण नागरिक भी असाधारण बन सकता है, यदि उसमें जुनून, मेहनत और देशप्रेम का संगम हो।
उनकी उपलब्धियाँ, पुरस्कार और फिल्में हमेशा हमें याद दिलाती रहेंगी कि बॉलीवुड में एक महानायक ने अपने अभिनय, निर्देशन और सामाजिक संदेशों से एक अमिट छाप छोड़ी। आज, जब हम उन्हें याद करते हैं, तो उनके द्वारा दिए गए संदेश – संघर्ष, समर्पण और देशभक्ति – हमारे लिए एक प्रेरणा बनकर उभरते हैं।